अर्थात अंधकार से मुझे प्रकाश की ओर ले जाओ- यह प्रार्थना भारतीय संस्कृति का मूल स्तम्भ है। प्रकाश में व्यक्ति को सब कुछ दिखाई देता है| अन्धकार में नही। प्रकाश से यहां तात्पर्य ज्ञान से है। ज्ञान से व्यक्ति का अंधकार नष्ट होता है। उसका वर्तमान और भावी जीने योग्य बनता है। ज्ञान से उसकी सुप्त इन्द्रियाँ जागृत होती है। उसकी कार्य क्षमता बढती है जो उसके जीवन को प्रगति पथ पर ले जाती है।
विद्या सर्वश्रेष्ठ धन है। इसे चोर भी चुरा नहीं सकता। जो दूसरों को देने पर बढता है। विदेश में विद्या ही अच्छा मित्र है। विद्या से विनय, विनय से योग्यता, योग्यता से धन और धर्म, धर्म से सब सुख प्राप्त होते है। ज्ञान से बुद्धि तीव्र होती है।
जहां राजाओं ने लडाइयाँ तलवार की नोंक पर जीतीं और साम्राज्य स्थापित किए, वहीं चाणक्य ने अपनी बुद्धि से सम्पूर्ण नन्द वंश का नाश कर चन्द्रगुप्त को राजा बनाया। यहां जीत बृद्धि की हुई जिसे धार दी जान ने। विद्या और सुख एक साथ प्राप्त नहीं हो सकते।
सुख चाहने वाले को विद्या और विद्या चाहने वाले को सुख त्याग देना चाहिए। विद्याहीन पशु-समान है। जिसे कोई पसन्द नहीं करता। इसलिए श्रेष्ठ विद्वान से ही उत्तम विद्या प्राप्त करनी चाहिए, भले ही वह किसी जाति का क्यों न हो।