राष्ट्रीय आन्दोलन के चरम उत्कर्ष में भारतीय नवोत्थान हेतु राष्ट्रीय चेतना के प्रसार एवं भारतीय संस्कृति के संरक्षण की दृष्टि से समग्र राष्ट्र में एक नवीन चेतना एवं सामाजिक क्रांति के लिए विभिन्न प्रकार की सामाजिक संस्थाओं की अनवरत स्थापना हो रही थी तब तत्कालीन भरतपुर राज्य में भी प्रजामण्डल आर्य समाज के माध्यम से राष्ट्रीय आन्दोलन एवं सामाजिक नवोत्थान के लिए कतिपय समाजसेवी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी तथा समाज सुधार के प्रति जागरुक अग्रणी नागरिक यथा स्व. सेठ श्री रघुनाथ प्रसाद जी भुसावर, श्री बाबूराम जी बजाज भुसावरी भरतपुर, स्व. श्री सत्यप्रिय जी बल्लभगढ़, स्व. श्री विश्वप्रिय जी शास्त्री बल्लभगढ़, स्व. माता सरस्वती देवी बौहरिन भरतपुर, स्व. पं. नत्थीलाल जी निठार, स्व. पं. रेवतीशरण जी बयाना, स्व. श्री मा आदित्येन्द्र जी थून, स्व. सेठ श्री रतनलाल जी मंहगाये वाले भरतपुर, स्व. लाल श्री गणेशीलाल जी बयाना, स्व. श्री केहरी सिंह जी पाण्डेय भुसावर एवं स्व. श्री जगन्नाथ प्रसाद जी एडवोकेट ब्यावर आदि भी इस विचार को मूर्त रूप देने हेतु सक्रिय विचार करने लगे कि भरतपुर राज्य में भी एक ऐसी महिला शिक्षण संस्था की स्थापना की जाये जो महिला नवोत्थान के साथ-साथ नारी में भारतीय मूल्यों के प्रति निष्ठा एवं भारतीय संस्कृति के अनुरूप विदुषी महिलायें शिक्षित करने में संक्षम हों एवं इन्हीं मनीषियों के विचार एवं कल्पना को साकार स्वरूप देने हेतु स्व. श्री सत्यप्रिय जी कालान्तर में; स्व. स्वामी सत्यानन्द जीद्ध की प्रेरणा, लगन एवं सक्रिय सहयोग से स्व. सेठ श्री रघुनाथ प्रसाद जी ने श्री आर्य महिला विद्यापीठ की स्थापना की तथा उन्होंने अपना पूरा जीवन तन,मन, धन इस संस्था को अर्पित कर दिया। इसका विधिवत भूमि पूजन एवं शिलान्यास वैशाख शुक्ल द्वादशी सं. 2003 तदानुसार 28 अप्रैल, 1946 को भरतपुर राज्य की तत्कालीन महारानी स्व. श्री जया चामुण्डा अम्मानी के कर कमलो द्वारा सम्पन्न हुआ।